lakhnavi andaz shirshak par prakash daalte hue paath mein kiye gaye vyangaye ko spasht kijiye.
लेखक ने इसमें उस सांमती वर्ग पर व्यंग्य किया है, जो सच्चाई से अंजान है और अपनी बनाई बनावटी दुनिया में जी रहे हैं। इनके लिए देश, समाज से कोई सरोकार नहीं हैं। इनके लिए इनका झूठा अभिमान सब कुछ हैं। इस पाठ के नवाब ऐसे ही हैं। अपनी झूठी शान को कायम रखने के लिए वह खीरों को बिना खाए फेंक देते हैं। नवाब स्वयं जानते थे कि न उनकी हैसियत और स्थिति ऐसी है कि वह खीरों को फेंके परन्तु लेखक के सम्मुख अपनी शान को नष्ट होते हुए नहीं देख सकते थे। अतः बिना खाए खीरों को फेंक दिया। इसलिए लेखक ने इस पाठ को उन्हीं को समर्पित करके इसका नाम लखनवी अंदाज़ रखा।