Lekhak ka yeh kehna kahan tak uchit hai ki yeh bas gandhi ji ke asahyog aur savinay avagya aandolan ke samay avashyq javan rhi hogi

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लेखक ने बस को देखकर सोचा कि भारत में जिस प्रकार अंग्रेजों की नीतियों के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चलाया गया था। अंग्रेजों की नीतियों को कोई मान नहीं रहा था, ठीक उसी प्रकार बस के सारे पुर्जे असहयोग कर रहे थे खिड़की में यहाँ वहाँ कांच टूटे हुए थे टंकी में छेद हो गया था कभी भी ब्रेकफेल हो सकता था केवल इंजन चल रहा था और पूरी बस बाजे की तरह बज रही थी

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