lekhak ko navab sahab ka moan rehna bhi akhar tha aur bate karna bhi kyu
नमस्कार मित्र!
लेखक को उनका मौन रहना नहीं अखर रहा था बल्कि नवाब साहब को लेखक का होना अखर रहा था। लेखक तो शुरू से ही बात करना चाह रहा था परन्तु नवाब साहब स्वयं उनको देखकर अनदेखा कर रहे थे। नवाब साहब ने लेखक से बात भी कि तो मजबूरी।
ढेरों शुभकामनाएँ!