lekhak ne 'Topi Shukla' paath ke maadhyam se kya shiksha deni chahi hai?

मित्र 'टोपी शुक्ला' कहानी प्रेम के महत्व का वर्णन करती है। इस कहानी में लेखक राही मासूम रज़ा ने बताने का प्रयास किया है कि प्रेम जाति, धर्म, और उम्र के बधनों से परे है। प्रेम एक सुंदर भावना है। उसके सामने हर दुर्भावना और दुख निष्फल हो जाता है। टोपी, इफ़्फ़न का मित्र है। इफ़्फ़न शहर के कलेक्टर का पुत्र है और मुस्लिम परिवार से है। टोपी ब्राह्मण है परंतु दोनों के लिए पद और धर्म का कोई महत्व नहीं है। वे दोनों पक्के मित्र हैं। यही उनकी पहचान है। वहीं इफ़्फ़न की दादी उम्र दराज़ महिला हैं। टोपी और उनके बीच घनिष्ट संबंध है। टोपी, इफ़्फ़न के घर सिर्फ उसकी दादी से मिलने जाता है। टोपी की अपनी दादी भी है। परंतु उनसे उन्हें कभी प्रेम और स्नेह की कोमल छाया नहीं मिली। मिला है तो डाँट, अविश्वास और अपमान। इफ़्फ़न की दादी उसे अपनी दादी से ज्यादा प्यारी लगती है। उसे इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि वह मुस्लिम है। उसके लिए तो वह संसार की सबसे प्यारी दादी है। लेखक इस कहानी में टोपी शुक्ला के माध्यम से यह प्रश्न उठाते हैं कि समाज में क्या ज्यादा महत्वपूर्ण है, प्रेम, धर्म, जाति या कुछ और। इस कहानी ने अपनी बात को बहुत सुंदर ढ़ग से व्यक्त किया है।

 

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