maile jo karat gaat ka arth. (hindi sparsh-1 dhool class 9)

इस पंक्ति का आशय यह है कि वे व्यक्ति धन्य हैं जो धूल से सने बालकों को अपनी गोद में उठाते हैं और उन पर लगी धूल का स्पर्श करते हैं। बच्चों के साथ उनका शरीर भी धूल से सन जाता है। लेखक को ' मैले ' शब्द में हीनता का बोध होता है क्योंकि वह धूल को मैल नहीं मानते। ' ऐसे लरिकान ' में भेदबुद्धी नज़र आती है। अत : इन पंक्तियों द्वारा लेखक धूल को पवित्र और प्राकृतिक श्रृंगार का साधन मानते हैं।

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