manushya Kavita aur Ab Kahan dusre ke Dukh Mein Dukhi hone wale path ka Kendriya Bhav ek hi hai .....pls help

प्रिय छात्र

मनुष्यता’ कविता और 'अब कहाँ  दूसरे के दुख से दुखी होने वाले'  पाठ का केंद्रीय भाव एक ही है। दोनों पाठ में बताया गया है कि आज की दुनिया में ऐसे लोगों की कमी हो रही है, जो दूसरों को तकलीफ में देखकर स्वयं परेशान होते हैं। अन्य प्राणियों के प्रति मनुष्य द्वारा किए जाने वाले दुर्व्यवहार का उल्लेख किया है। ऐसे में मनुष्य को कोशिश करते रहना चाहिए कि उनके कारण कोई भी मनुष्य, जीव-जन्तु या प्राणी तकलीफ न पाए। लेखक ने समाप्त हो रहे इंसानियत के गुण की ओर सबका ध्यान दिलाने का प्रयास किया है। मनुष्य अपनी मनुष्यता न भूलकर सबका कल्याण करे और परोपकार करे। धन्यवाद ।

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