Meaning of these lines
 
गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्‍तेजित कर
मोती की लडि़यों-से सुन्‍दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!
 
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्‍चाकांक्षायों से तरूवर
है झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।
 
 उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार पारद* के पर!

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