meerabai ke 10 dohe with their meaning& guru nanakke 10 dohe with their meaning

मित्र हम अापको मीराबाई तथा गुरु नानक के कुछ पद व दोहे लिखकर दे रहे हैं। इस विषय पर आैर अधिक जानकारी आप इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।

मीराबाई

१. मीरा को प्रभु साण्ची दासी बना। 

झूठे धंधों से मेरा फंदा छुडा।। 

लूटे ही लेत विवेक का डेरा। 

बुधि बल यदपि करूं बहुतेरा।। 

हायहाय नहिं कछु बस मेरा।मरत हूं बिबस प्रभु धा सवेरा।। 

धर्म उपदेश नितप्रति सुनती हूं। 

मन कुचाल से भी डरती हूं।। 

सदा साधु-सेवा करती हूं। 

सुमिरण ध्यान में चित धरती हूं।। 

भक्ति-मारग दासी को दिखला। 

मीरा को प्रभु सांची दासी बना।। 



२. आली रे मेरे नैणां बाण पडी।। 

चित्त चढी मेरे माधुरी मूरत उर बिच आन अडी। 

कबकी ठाडी पंथ निहारूं अपने भवन खडी।। 

कैसे प्राण पिया बिनुं राखूं जीवनमूल जडी।

मीरा गिरधर हाथ बिकानी लोग कहैं बिगडी।। 



३.दरस बिनु दूखण लागे नैन।

 जबसे तुम बिछुडे प्रभु मोरे कबहुं न पायो चैन।। 

सबद सुणत मेरी छतियां कांपे मीठे लागे बैन। 

बिरह कथा कांसूं कहूं सजनी बह ग करवत ऐन।। 

कल न परत पल हरि मग जोवत भ छमासी रैन। 

मीरा के प्रभू कब र मिलोगे दुखमेटण सुखदैन।। 



४. पायो जी म्हे तो रामरतन धन पायो। 

बस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा को अपणायो। 

जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो। 

खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढत सवायो। 

सत की नाव खेवहिया सतगुरु, भवसागर तर आयो। 

मीरा के प्रभु गिरधरनागर, हरख-हरख जस पायो॥



५. म्हारे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥ 

जाके सिर मोर मुगट मेरो पति सोई। 

तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥ 

छाँडि दई कुद्दकि कानि कहा करिहै कोई॥ 

संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥ 

चुनरीके किये टूक ओढ लीन्हीं लोई। 

मोती मूँगे उतार बनमाला पोई॥ 

अंसुवन जू सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई। 

अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई॥ 

भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई। 

दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥

गुरुनानक
1) हरि बिनु तेरो कोन सहाई।
​   काकी मात पिता सुत बनिता, को काहू को भाई।।
​2) जगत में झूठी देखि प्रीत । 
    अपने ही सुख सों सब लागे, क्या दारा क्या मीत।। 
3) मेरो मेरो सभी करत हैं, हित सों बाध्याै चीत।
​    अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत।। 
 

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