mere scul mein debate competion hai iss topic par "insaan janam se nhi karam se mana jata hai" so pleazzz mujhe koi debate lake dijiye 

नमस्कार मित्र!
यह बात सत्य है कि मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से माना जाता है। जन्म से कोई भी व्यक्ति किसी बड़े विद्वान व्यक्ति का पुत्र या रिश्तेदार बन सकता है। परन्तु उसका व्यक्तित्व उस बड़े विद्वान के नीचे दबकर रह जाएगा। यह संसार मनुष्य के वंश को नहीं जानता। वह यदि जानता है या फिर किसी को मानता है, तो वह उसके कर्म होते हैं। कर्म का प्रकाश उसे सारे संसार में प्रकाशित कर देता है।
हमारे सम्मुख बहुत से ऐसे उदाहरण है, जिनके माता-पिता या सन्तानों को हम नहीं जानते परन्तु वह हमारे लिए पूज्यनीय होता है, उसका परिवार नहीं। यदि हम देखें तो समाज में ऐसे अनगिनत उदाहरण बिखरे पड़े मिल जाएँगें। महात्मा गाँधी, झाँसी की रानी, भगत सिंह ऐसे उदाहरण हैं, जो अपने कार्यों से पहचाने जाते हैं और जीवन भर पहचाने जाते रहेंगे। हमें से कई ऐसे होगें, जिन्हें इनके माता-पिता, वंश और कार्य आदि के बारे में जानकारी नहीं होगी। परन्तु यदि हमारे सम्मुख इनका नाम आएगा तो हमारी आँखें श्रद्धा और प्रेम से झुक जाएँगी। यह बात सिद्ध करती है मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से जाना जाता है। इसी बात का स्पष्ट करते हुए कबीर जी ने कहा है-
ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ।
अर्थात कोई मनुष्य ऊँचे कुल में जन्म ले परन्तु यदि उसके किए गए कार्य ऊँचे नहीं हैं, तो उसका ऊँचे कुल में जन्म लेना उसकी कोई सहायता नहीं कर सकता। अर्थात मनुष्य का ऊँचा कुल उसके नीच कार्य से होने वाली निंदा से उसे बचा नहीं सकता है। उसके कार्य ही उसकी पहचान होते हैं। जैसे सोने के पात्र में यदि शराब भर दी जाए तो सज्जनों द्वारा उसकी निंदा ही की जाएगी। इससे न तो शराब की महत्ता बढ़ेगी और न कलस की।  
 
ढेरों शुभकामनाएँ!

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