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मित्र

परोपकार

'परोपकार' दो शब्दों के मेल से बना है, पर (दूसरों) + उपकार, दूसरों पर उपकार अर्थात् भलाई। हम कह सकते हैं, इसका अर्थ है- दूसरों की भलाई। परमात्मा ने हमें ऐसी शक्तियाँ व सामर्थ्य दी हैं, जिससे हम दूसरों का कल्याण कर सकते हैं। हम यदि अकेले प्रयत्न करें, तो हमारे लिए अकेले विकास व उन्नति करना संभव नहीं होगा। इसलिए हम केवल अपनी ही भलाई की चिंता करें व दूसरों से कोई सरोकार नहीं रखे, तो इसमें हमारे स्वार्थी होने का प्रमाण मिलता है। हमारे मन में परोपकार की भावना हमेशा होनी चाहिए। कोई भी मानव अकेले स्वयं की भलाई नहीं कर सकता। उसके अकेले के प्रयत्न उसके काम नहीं आने वाले, उसको इसके लिए दूसरों का साथ अवश्य चाहिए। यदि हम अकेले ही सब कर पाते तो आज कोई भी मनुष्य इस संसार में दु:खी नहीं रहता। हम सब धनवान, वर्चस्वशाली होने की कामना करते हैं, परंतु यह सब अकेले संभव नहीं है। प्रकृति भी हमको सकारात्मक प्रतिक्रिया तभी देती है, जब हम परोपकार करते हैं। यही भावना हम प्रकृति के कण-कण में देख सकते हैं, सूर्य, चन्द्र, वायु, पेड़-पौधे, नदी, बादल और हवा बिना स्वार्थ के संसार की सेवा में लगे हुए हैं। सूर्य बिना किसी स्वार्थ के अपनी रोशनी से इस जगत को जीवन देता है। चन्द्रमा अपनी शीतल किरणों से सबको शीतलता प्रदान करता है। वायु अपनी प्राणवायु से संसार के प्रत्येक छोटे-बड़े जीव को जीवन देती है। पेड़-पौधे अपने फलों से सबको जीवन देते हैं। महात्मा गांधी और मदर टेरेसा के उदाहरण हमारे समक्ष हैंं।

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Sorry maan i do not know the answer 
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