Netaji Ka Chashma shirshak ki sardhakta spasht kare. - 3 marks

मित्र इस कहानी में एक चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगी हुई थी। उस मूर्ति में केवल एक चश्मे की कमी थी। कैप्टन जो कि एक चश्मे बेचने वाला व्यक्ति था, उसके ह्रदय में देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी हई थी। नेताजी की चश्माविहीन मूर्ति उसे बहुत कष्ट पहुँचाती थी। इसलिए वह रोजं नए-नए फ्रेम के चश्मे मूर्ति को पहना देता। अंत में जब कैप्टन की मृत्यु हो जाती है, तो छोटे-छोटे बच्चे सरकंडे का बना चश्मा मूर्ति को पहना देते हैं। इससे नई पीढ़ी के अंदर देशभक्तों के प्रति सम्मान को भी उजागर किया गया है। अत: 'नेताजी का चश्मा' शीर्षक सार्थक है। 

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