Netaji ka chasma kahani se desh bhakti ke sandesh ko batae

नेता जी का चश्मा के लेखक स्वयं प्रकाश जी है।

यह कहानी एक छोटे से कस्बे की है। इस कस्बे की नगरपालिका के किसी उत्साही प्रशासनिक अधिकारी ने कस्बे के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक संगमरमर की मूर्ति लगवा दी। यह कहानी इसी मूर्ति के इर्द-गिर्द घूमती है।इस मूर्त्ति को बनाने का कार्य कस्बे के हाई स्कूल के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी को सौंपा गया होगा जिन्होंने 1 महीने में मूर्ति बनवाने का विश्वास दिलाया।नेताजी की मूर्ति 2 फुट की थी और सुंदर थी। नेताजी सुंदर लग रहे थे और कुछ-कुछ मासूम से मूर्ति को देखते ही दिल्ली चलो और तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा याद आने लगता था। उस मूर्ति में बस एक चीज की कमी थी वह थी नेताजी की आंखों का चश्मा। मूर्ति की आंखों पर संगमरमर का चश्मा नहीं थाहालदार साहब कंपनी के काम से इसी कस्बे से गुजरते थे। जब हालदार साहब पहली बार इस कस्बे से गुजरे और पान खाने के लिए रूके तभी उन्होंने देखा कि मूर्ति पत्थर की थी लेकिन उस पर चश्मा असली था। हालदार साहब को कस्बे के नागरिकों की देशभक्ति की भावना का यह प्रयास अच्छा लगा वरना देशभक्ति तो आजकल मजाक की चीज होती जा रही है। हालदार साहब जब भी इस कस्बे से गुजरते चौराहे पर रुकते पान खाते और मूर्ति को ध्यान से देखते उन्हें हर बार मूर्ति का चश्मा बदला हुआ मिलता कभी गोल फ्रेम वाला, तो कभी मोटे फ्रेम वाला, तो कभी चौकोर चश्मा। जब हालदार साहब से नहीं रहा गया तो उन्होंने पान वाले से चश्मे के बदलने का कारण पूछ ही लिया पान वाले ने हंसते हुए कहा कि कैप्टन चश्मे वाला चश्मा चेंज कर देता है।हालदार साहब को समझ में आ गया कि एक कैप्टन नाम का चश्मे वाला है जिसे बगैर चश्मे के नेता जी की मूर्ति अच्छी नहीं लगती इसलिए वह अपनी छोटी सी दुकान में रखे हुए गिने चुने फ्रेमों में से कोई एक नेता जी की मूर्ति पर लगा देता है। लेकिन जब कोई खरीदार आता है और उससे वैसे ही प्रेम की मांग करता है तो वह मूर्ति पर लगा फ्रेम खरीदार को दे देता है और नेता जी से माफी मांगते हुए उन्हें दूसरा फ्रेम पहना देता है।हालदार साहब को यह सब बड़ा अजीब लग रहा था। एक दिन उन्होंने पान वाली से पूछा क्या कैप्टन चश्मे वाला नेता जी का साथी है या आजाद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही। पान वाले ने व्यंग में हंस कर कहा वह लंगड़ा क्या जाएगा फौज में पागल है पागल! वो देखो आ रहा है। हालदार साहब को पान वाले दो बार एक देशभक्त का इस तरह मजाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा उन्होंने देखा एक बूढ़ा मरियल सा व्यक्ति लंगड़ा कर, गांधी टोपी और आंखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में छोटी सी संदूक जी और दूसरे हाथ में बांस पर टंगे बहुत से चश्मे लिए एक गली से निकल रहा था और एक बंद दुकान के सहारे अपना बांस टिका रहा था यही था । यही था कैप्टन चश्मे वाला जो फेरी लगाता थाहालदार साहब 2 साल तक अपने काम के सिलसिले में इसी कस्बे से गुजरते रहे और नेता जी की मूर्ति पर बदलते हुए चश्मे को देखते रहे। एक बार हालदार साहब ने देखा की मूर्ति के चेहरे पर कोई भी चश्मा नहीं था पान वाले से पूछ तो पता चला कि कैप्टन मर गया है। हालदार साहब बहुत दुखी हो गए और सोचने लगे उस पीढ़ी का क्या होगा जो अपने देश के लिए सब कुछ न्योछावर करने वालों पर हंसती है और अपने लिए बिकने का मौका ढूंढती है।15 दिन के बाद हवलदार साहब दोबारा उसी कस्बे से गुजरे सोचा की मूर्ति के पास नहीं रुकेंगे और पान भी आगे ही खा लेंगे पर आदत से मजबूर आंखें चौराहे पर आते ही मूर्ति के तरफ उठ गई। गाड़ी से उतरकर तेज तेज कदमों से मूर्ति के तरफ आगे बढ़े और उसके सामने जाकर अटेंशन में खड़े हो गए उन्होंने देखा की मूर्ति पर सरकंडे से बना हुआ चश्मा लगा हुआ था। जिसे शायद बच्चों ने बनाकर मूर्ति को पहना दिया था इतनी सी बात पर उनकी आंखे भर आई।
 
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Netaji ka Chashma Kahani Mein Netaji Neta Ji ki Murti pasargadae ka Chashma hone Hona achi Deshbhakti Ki pariman Hai is kahani ki Deshbhakti ki avdharna ko samajhte Hue aajkal covid-19 se Jhooth Desh Samaj Ki vibhinn nagriko Jaise doctoron narson Safai karmchariyon police karmiyon Dainik Jivan ki Anya varn avkash Seva vastuon ka Ham Chahte deshbhakt nagrikon ko hauslon sangharshon chintaon samarpane Adhik ke bare mein likhiye
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