parashuram ne sevak aur shatru ke baare mein kya kha ?
मित्र परशुराम जी क्रोधित होकर बोले-सेवक वह कहलाता है, जो सेवा का काम करता है। मेरे प्रिय आराध्य का धनुष तोड़ने वाले ने शत्रु का काम किया है इसलिए उससे लड़ाई करनी चाहिए। वे आगे कहते हैं कि आराध्य देव शिव का यह धनुष जितने भी तोड़ा है, वह सहस्त्रबाहु के समान मेरा शत्रु है।