paristhitiyo ka vyatyachakr jeevan ko sukhe patte sa naachta hai . aashay spasht kijiye
answer asap
नमस्कार मित्र,
हमारे मित्र ने बिलकुल सही उत्तर दिया है। लेखक ने मनुष्य के जीवन की तुलना सुखे पत्ते से की है, जो परिस्थिति के वश में होकर भटकता रहता है। उसका स्वयं का कोई वश नहीं होता।
प्रतिभा आपके सहयोग के लिए धन्यवाद।