patron ki duniya ko lekhaq ke dwara agibo gareeb kyun kaha gaya hai ?

मित्र
 

मनुष्य संदेश को एक राज्य से दूसरे राज्य पहुँचाने के लिए महीने लगा देता था। कबूतर, हाथी, घोड़े इत्यादि जानवर भी पत्र भेजने के काम में आते थे। परन्तु जैसे-जैसे संचार के साधनों में विकास होता गया, महीने की दूरी दिनों में, दिनों की दूरी घंटों में तथा घंटों की दूरी पलों में सिमट गई। डाकियों ने महीनों का काम दिनों में समेट दिया। आज ई-मेल के माध्यम से मनुष्य कुछ क्षणों में अपना संदेश दूसरे देशों में सरलता से पहुँचा सकता है। फेसबुक, व्हाट्सएप, मोबाइल फोन इत्यादि से संदेेेेेश तुरंत  भेजे जा सकते है किंतु पत्रोंं का महत्त्व आज भी उतना ही है। पत्रोंं में जो आनंद और संतोष होता था वह किसी और में नहीं है। पुराने समय की जानकारी आज भी पत्रों के माध्यम से प्राप्त हो जाती है इसीलिए लेखक ने पत्रों की दुनिया को अजीबोगरीब कहा है।

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