Please answer this question before 9pm today.
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प्रिय विद्यार्थी ,
आपके प्रश्न का उत्तर है -
1. अंतिम दो साखियों के माध्यम से कबीर ने समाज में धर्म , जाति , कुल आदि के नाम पर व्याप्त संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है । उन्होंने समाज में धर्म और जाति के नाम पर हो रहे पाखंडों का भी कड़ा विरोध किया है ।
2. किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से नहीं , उसके कर्मों से होती है । अगर किसी व्यक्ति के कर्म अच्छे नहीं हैं , उसकी बुद्धि अच्छी नहीं है , तो वह ऊँचे कुल का कैसे हो सकते है । इस विषय में कबीर तर्क देते हैं कि अगर मदिरा को किसी स्वर्ण कलश में भर दिया जाए , तो भी उसकी प्रकृति में कोई अंतर नहीं आएगा । ठीक उसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति के कर्म अच्छे नहीं है , तो ऊँचे कुल में जन्म लेने के बाद भी वह समाज में इज्जत और प्रतिष्ठा का अधिकारी नहीं है ।
3. मनुष्य ईश्वर को मंदिरों और मस्जिदों में ढूँढता रहता है । वह ईश्वर को पाने के लिए तरह-तरह के व्यर्थ प्रयास करते रहता है ।
4. कबीर ने ईश्वर को 'सब स्वाँसों की स्वाँस में' कहा है क्योंकि ईश्वर हर जीव-जन्तु में , संसार के कण-कण में व्याप्त है । वह हर तरफ है , उसे कहीं भी ढूँढने की जरूरत नहीं है ।
आभार ।
आपके प्रश्न का उत्तर है -
1. अंतिम दो साखियों के माध्यम से कबीर ने समाज में धर्म , जाति , कुल आदि के नाम पर व्याप्त संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है । उन्होंने समाज में धर्म और जाति के नाम पर हो रहे पाखंडों का भी कड़ा विरोध किया है ।
2. किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से नहीं , उसके कर्मों से होती है । अगर किसी व्यक्ति के कर्म अच्छे नहीं हैं , उसकी बुद्धि अच्छी नहीं है , तो वह ऊँचे कुल का कैसे हो सकते है । इस विषय में कबीर तर्क देते हैं कि अगर मदिरा को किसी स्वर्ण कलश में भर दिया जाए , तो भी उसकी प्रकृति में कोई अंतर नहीं आएगा । ठीक उसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति के कर्म अच्छे नहीं है , तो ऊँचे कुल में जन्म लेने के बाद भी वह समाज में इज्जत और प्रतिष्ठा का अधिकारी नहीं है ।
3. मनुष्य ईश्वर को मंदिरों और मस्जिदों में ढूँढता रहता है । वह ईश्वर को पाने के लिए तरह-तरह के व्यर्थ प्रयास करते रहता है ।
4. कबीर ने ईश्वर को 'सब स्वाँसों की स्वाँस में' कहा है क्योंकि ईश्वर हर जीव-जन्तु में , संसार के कण-कण में व्याप्त है । वह हर तरफ है , उसे कहीं भी ढूँढने की जरूरत नहीं है ।
आभार ।