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मित्र,
कबीर जी के अनुसार सच्चा भक्त वह होता है जो ईश्वर के प्रति सच्चे मन से समर्पित होता है। ईश्वर की प्राप्ति मंदिर या मस्जिद मे जाकर नहीं अपितु, सच्चे मन से उनकी भक्ति करने से होती है। यदि मनुष्य के अंदर से अहंकार समाप्त हो जाता है, तो उसे स्वत: ही ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है। प्रेम से भक्ति करना ही सच्चा ज्ञान है, क्योंकि इससे हमारे मन का अज्ञान रुपी अंधकार मिट जाता है। कबीर के ईश्वर कण-कण में व्याप्त हैं। वे सर्वत्र माैजूद हैं। इनके ईश्वर को सच्ची भक्ति द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
कबीर जी के अनुसार सच्चा भक्त वह होता है जो ईश्वर के प्रति सच्चे मन से समर्पित होता है। ईश्वर की प्राप्ति मंदिर या मस्जिद मे जाकर नहीं अपितु, सच्चे मन से उनकी भक्ति करने से होती है। यदि मनुष्य के अंदर से अहंकार समाप्त हो जाता है, तो उसे स्वत: ही ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है। प्रेम से भक्ति करना ही सच्चा ज्ञान है, क्योंकि इससे हमारे मन का अज्ञान रुपी अंधकार मिट जाता है। कबीर के ईश्वर कण-कण में व्याप्त हैं। वे सर्वत्र माैजूद हैं। इनके ईश्वर को सच्ची भक्ति द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।