Please can I have the summary of Yashpal's 'Lakhnavi Andas' . Please give it as soon as you can.
लेखक यशपाल एक बार कहानी लिखने के उद्देश्य से एकांत की तलाश में रेल से जाने का निश्चय करते हैं। वहाँ उनकी मुलाकात लखनऊ के नवाब से होती है। वह खीरे को बिना खाए मात्र सूंघकर संतुष्ट हो जाते हैं। उसके बाद नवाब साहब ऐसे डकार लेते हैं मानो उनका पेट भर गया हो। लेखक को इस घटना से यह समझ आता है कि घटना और पात्रों के लिए घंटों सोचने से नई कहानी नहीं बनाई जा सकती है। वह तो ऐसे भी बन जाती है। लेखक ने नवाब साहब के तौर-तरीकों पर भी अच्छा व्यंग्य कसा है। देश को आज़ाद हुए बहुत समय हो गया है लेकिन आज भी ऐसे लोग विद्यमान हैं, जो अपनी झूठी सामंती दुनिया में जी रहे हैं। उनके लिए अपनी नकली आन-बान-शान उनकी ज़रूरतों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। लेखक भली-भांति जानते थे कि नवाब साहब बहुत भूखे थे। खीरे उन्होंने अपने खाने के लिए ही रखे थे। परन्तु लेखक द्वारा खीरे खाने से मना करने पर उनके अंहकार को चोट पहुँची थी। वह कैसे स्वयं को लेखक के आगे नीचा रख सकते थे। अत: उन्होंने खीरे खाने का जो तरीका निकाला, वह उनकी बनावटी शान और नवाबी सनक का प्रत्यक्ष उदाहरण था। लेखक इसी नवाबी सनक पर इसका नामकरण करते हैं लखनवी अंदाज़। जोकि बिलकुल सही है।