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प्रिय मित्र ,
आप के प्रथम प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है- 
 एक जंगल में पेड़ पर घोंसला बनाकर एक कौआ-कव्वी का जोड़ा रहता था। उसी पेड़ के खोखले तने में कहीं से आकर एक दुष्ट सर्प रहने लगा। हर वर्ष  कव्वी घोंसले में अंडे देती और दुष्ट सर्प मौक़ा पाकर उनके घोंसले में जाकर अंडे खा जाता।
एक बार जब कौआ व कव्वी जल्दी भोजन पाकर शीघ्र ही लौट आए तो उन्होंने उस दुष्ट सर्प को अंडे खाते देख लिया, उन्हें शत्रु का पता चल गया।
कौए ने काफ़ी सोचा-विचारा और पहले वाले घोंसले को छोड़ उससे काफ़ी ऊपर टहनी पर घोंसला बनाया। कव्वे ने समझाया तो कौवे की बात मानकर कौव्वी ने नए घोंसले में अंडे दिए,उनमें से बच्चे भी निकल आए।
एक दिन सर्प खोह से निकला और उसने कौओं का नया घोंसला खोज लिया। घोंसले में  तीन नवजात शिशु थे। दुष्ट सर्प उन्हें एक-एक करके सबको निगल गया और अपने खोह में लौटकर डकारें लेने लगा। कौआ व कव्वी लौटे तो घोंसला ख़ाली पाकर सन्न रह गए।  वह सारा माजरा समझ गए। कव्वी की छाती तो दुख से फटने लगी। कौए ने योजना बनाई।
 राजकुमार अपने मित्रो के साथ वहां जल-क्रीड़ा करने आता था,साथ सैनिक भी आते थे। कौआ उनका माला उठाकर भागा। मित्र चिल्लाये देखो! वह राजकुमार का माला उठाकर ले जा रहा है।' सैनिकों ने ऊपर देखा तो सचमुच एक कौआ माला लेकर धीरे-धीरे उड़ता जा रहा था। सैनिक उसी दिशा में दौड़ने लगे। कौआ सैनिकों को अपने पीछे लगाकर धीरे-धीरे उड़ता हुआ उसी पेड़ की ओर ले आया और माला ऐसे गिराया कि वह सांप वाले खोह के भीतर जा गिरा। सैनिक दौड़कर खोह के पास पहुंचे।  खोह के भीतर भाला मारा। सर्प घायल हुआ और फुफकारता हुआ बाहर निकला। जैसे ही वह बाहर आया, सैनिकों ने भालों से उसके टुकडे-टुकडे कर डाले।
सादर।

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