Please give me defination of the doha

दोहे
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा आपुना, मुझसे बुरा न कोय ॥

कबिरा सो धन संचिए, जो आगे को होय ।
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देखा कोय |

तू जब तू आया जगत में, लोग हँसे तू रोय।
ऐसी करनी न करी, पाछे हँसे सब कोय॥

गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोबिंद दियौ बताय।।

दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करें, तो दुःख काहे को होय॥


प्रिय मित्र , आपके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार से है। 

1. जब मैंने  इन संसार में बुराई को ढूँढा  तब मुझे कोई बुरा नहीं मिला, जब मैंने  खुद का विचार किया तो मुझसे बड़ी बुराई नहीं मिली।  दूसरों  में अच्छा बुरा देखने वाला व्यक्ति सदैव खुद को नहीं जनता।  जो दुसरो में बुराई ढूंढ़ते हैं वास्तव में वही सबसे बड़ी बुराई है। 

2. कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए. सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा.

  • 0
What are you looking for?