please give me the vyakhya and sandharb of this chapter !!

(Both paragraphs )

नमस्कार मित्र!
(1)रैदास जी अपने आराध्य का सुमिरन करके कहते हैं कि हे प्रभु आपके नाम की रट ऐसी लगी है, जो अब कभी नहीं छूटेगी। प्रभु आपका मेरा संबंध ऐसा है जैसे चंदन और पानी के बीच होता है। जिस प्रकार चंदन के संपर्क में आने से पानी भी चंदन की भांति सुगन्धित हो जाता है, उसी प्रकार आपके सुमिरन से मेरा तन और मन सुगन्धित हो गया है। वह आगे कहते हैं कि प्रभु आप बादल के समान हैं और मैं मोर के समान हूँए जैसे सावन में आकाश में बादल छाते ही मोर नाचने लगता है, आपके दर्शन से मैं भी प्रसन्नता के कारण भाव-विभोर हो जाता हूँ। वह चकोर और चंद्रमा का उदाहरण देते हुए कहते हैं प्रभु जैसे चकोर चंद्रमा के दर्शन के लिए व्याकुल रहता है और उसकी तरफ निहारता रहता है, उसी प्रकार मैं भी आपके दर्शन के लिए तड़प रहा हूँ। हे प्रभु आप दीपक और मैं आपकी बाती हूँ। जैसे दीपक के साथ उसकी बाती जलती है, मैं भी बाती के समान आपका प्रेम पाने के लिए जलता हूँ। प्रभु जी आप और मैं मोती व धागे के समान एक दूसरे से परस्पर जुड़े हुए हैं। आप मोती के समान सुन्दर व उज्ज्वल हैं और मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ। प्रभु आपका और मेरा मिलन सोने में सुहागे के समान है। जैसे सुहागे के संपर्क में आकर सोना चमक जाता है, मैं भी आपके संपर्क में आकर पवित्र और निर्मल हो गया हूँ। रैदास जी कहते हैं कि मैं आपकी ऐसी भक्ति करता हूँ मानो एक सेवक अपने मालिक की करता है।
(2) इन पंक्तियों मे कवि (भक्त) प्रभु से कहते हैं कि हे प्रभु तुम्हारे बिना इस संसार में ऐसा कृपालु कौन है जो भक्त के लिए इतना बड़ा काम कर सकता है। तुम दीन दुखियों पर दया व प्रेम बरसाने वाले हो। तुम्हीं ऐसे दयालु स्वामी हो जिसने मुझ जैसे अछूत और गरीब व्यक्ति के सर पर राजाओं के समान छत्र रख दिया है। अर्थात्‌ तुम्हारे कारण ही मुझे राजाओं जैसा मान-सम्मान प्राप्त हुआ है। वह कहते हैं कि प्रभु मैं अभागा व्यक्ति हूँ। मुझ पर तुम्हारी असीम दया व कृपा है। हे स्वामी आपने मुझ जैसे नीच व्यक्ति को ऊँचा सम्मान दिया है। यह तुम्हारे कृपा का प्रमाण है। वह आगे कहते हैं कि सधना जैसे कसाई और सैन जैसे नाई संसार से तर गए हैं। अर्थात्‌ उन्हें ज्ञान प्राप्त हो तुम्हारे चरणों का सुख प्राप्त हुआ है।
ढेरो शुभकामनाएँ!

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