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प्रिय छात्र,
भारतीय संस्कृति में दीपावली त्योहार का अपना ही महत्व है। यह पर्व कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इस त्योहार में भारतीय लोगों में विशेष उत्साह देखा जाता है। लोग महीनों से इस त्योहार की तैयारियाँ आरंभ कर देते हैं। लोग अपने घरों और दुकानों की सफाई कर उन्हें रंगवाते हैं। नए साजो-समान से घर को सजाया जाता है। बाज़ारों में भी प्रत्येक दुकान विभिन्न सजावटी समानों से भरी होती है। विभिन्न तरह के मिष्ठान भी बाज़ारों की शोभा बढ़ाते हैं। इस दिन अपने सगे-संबंधियों को मिठाई और उपहार देने की परंपरा है।अमावस्या की काली रात में सहस्र दीपों को जलाकर उसे पूर्णिमा की रात में परिवर्तित कर दिया जाता है। इस दिन लक्ष्मी और गणेश पूजन की भी परंपराएँ हैं।
नये वर्ष का स्वागत गाने-बाजों, धूम धड़ाकों के साथ करने की प्रथा रही है। दीपावली उत्सव में अब नववर्ष की प्रासंगिकता भले ही न रही हो लेकिन धूम-धड़ाकों में बढ़ोत्तरी होती ही गयी है।वक्त बदलने के साथ और मिट्टी के दीपों की टिमटिमाती पंक्ति का स्थान बिजली के रंग बिरंगे झालर बत्ती ने ले लिया है, वहीं खुशियां व्यक्त करने का स्वरूप बदलकर कान फाडऩे वाले शोर, धमाके और जुए ने स्थान ले लिया है। इसका जिम्मेदार कौन है? गंभीरता से कहें तो एक तरह से हम ही इसके जिम्मेदार हैं। हम बड़े पैमाने पर तो शस्त्रों पर प्रतिबंध लगाने की चर्चा करते हैं लेकिन हम अपने बच्चों को शुरू से ही तरह-तरह के बंदूक आदि खिलौने खरीद कर अपने आप पर गर्व महसूस करते हैं।कोई धन में आग लगाकर खुश होता है तो किसी को दर्शन तक नहीं होता। कोई दीपावली में हंसकर रूपयों को जलाकर भी खुशी मनाता है तो कोई वहीं भूखे गमों में डूब कर कहता है- रात और दिन दीया जले, मेरे मन में फिर भी अंधियारा है.... अत: दीपावली के त्योहार को त्योहार ही रहने दें। इस खुशी और प्रकाशमान त्योहार को आतंक का त्योहार न बनने दें।

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no i dont know
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