please give the hindi meaning of all of these.

प्रिय छात्र,

 आपकी _(जैसे पहली )_ क्वेरी का समाधान नीचे प्रदान किया गया है शेष प्रश्नों के लिए हम आपसे अनुरोध करते हैं कि हमारे विशेषज्ञों से त्वरित सहायता प्राप्त करने के लिए आप उन्हें अलग-अलग थ्रेड में पोस्ट करें।

“तुलसी संत समान चित, हित अनहित नहिं कोय।
अंजलि गत सुभ सुमन जिमि, सम सुगंध कर दोय॥ ”

भावार्थ-
 तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं संतों को प्रणाम करता हूँ, जिनके चित्त में समता है, जिनका न कोई मित्र है और न शत्रु! जैसे अंजलि में रखे हुए सुंदर फूल (जिस हाथ ने फूलों को तोड़ा और जिसने उनको रखा उन) दोनों ही हाथों को समान रूप से सुगंधित करते हैं (वैसे ही संत शत्रु और मित्र दोनों का ही समान रूप से कल्याण करते हैं।)

“गोधन गजधन बाजिधन,और रतन धन खान।
 जब आवत सन्‍तोष धन, सब धन धूरि समान ।। ”

भावार्थ–
तुलसीदास जी कहते हैं कि मनुष्य के पास भले ही गौ रूपी धन हो, गज (हाथी) रूपी धन हो, वाजि (घोड़ा) रूपी धन हो और रत्न रूपी धन का भंडार हो, वह कभी संतुष्ट नहीं हो सकता। जब उसके पास सन्तोष रूपी धन आ जाता है, तो बाकी सभी धन उसके लिए धूल या मिट्टी के बराबर है। अर्थात् सन्तोष ही सबसे बड़ी सम्पत्ति है 

“आवत ही हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।
 तुलसी तहां न जाइये, कंचन बरसे मेह।।”


भावार्थ–
  तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस जगह आपके जाने से लोग प्रसन्न नहीं होते हों, जहाँ लोगों की आँखों में आपके लिए प्रेम या स्नेह ना हो, वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ स्वर्ण मुद्राओं की बारिश ही क्यों न हो रही हो।

“तुलसी संत सुअंब तरु, फूलि फलहिं पर हेत। 
 इतते ये पाहन हनत, उतते वे फल देत॥ ”

भावार्थ–
तुलसीदास जी कहते हैं कि सज्जन और रसदार फलों वाले वृक्ष दूसरों के लिए फलते-फूलते हैं क्योंकि लोग तो उन वृक्षों पर या सज्जनों पर इधर से पत्थर मारते हैं पर उधर से वे उन्हें पत्थरों के बदले में फल देते हैं। भाव यह है कि सज्जनों के साथ कोई कितना ही बुरा व्यवहार क्यों न करे, पर सज्जन उनके साथ सदा भला ही व्यवहार करते हैं।

“मुखिया मुखु सौं चाहिऐ खान पान को एक।
 पाले–पोसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।।”

भावार्थ–
 तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है । अर्थात जो व्यक्ति कहीं भी किसी समूह का नेतृत्व कर रहा है, उसको चाहिए कि उसके सभी सहचरों का अनुकूल पालन पोषण हो इसकी भी वह चिंता करें। यही गुण व्यक्ति को व्यक्तित्व में रूपांतरित कर देती है ।

सादर।
 

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