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मित्र

ईश्वर सब ओर व्याप्त है। वह निराकार है। हमारा मन अज्ञानताअहंकार,विलासिताओं में डूबा है। इसलिए हम उसे नहीं देख पाते हैं। हम उसे मंदिर,मस्जिदगुरुद्वारा सब जगह ढूँढने की कोशिश करते हैं लेकिन जब हमारी अज्ञानता समाप्त होती है हम अंतरात्मा का दीपक जलाते हैं तो अपने ही अंदर समाया ईश्वर हम देख पाते हैं।

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