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मित्र हम आपको दो दोहे दे रहें।

छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥

व्याख्या- क्षमा बड़ों का कहना है, तो उत्पात छोटों का। भाव यह है कि छोटे की गलतियों को बड़ों को क्षमा कर देना चाहिए। रहीम इसे स्पष्ट करते हुए कहते हैं। यदि छोटा कीड़ा लात भी मारे तो उससे किसी को नुकसान नहीं होता है।

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥2॥
व्याख्या- वृक्ष कभी अपने फल नहीं खाते हैं और न ही सरोवर अपने जल को पीता है। अतः इससे हमें सीखना चाहिए कि दूसरों के उद्धार के लिए हमें धन का संचय करना चाहिए।
 

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