Please send me the answer of question no 9) i , ii , and iii

मित्र! 
हम एक बार में एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। आप अपने प्रश्न दुबारा पूछ सकते हैं।

कवि ने प्रकृति का बहुत ही मनोहारी चित्रण किया है। नदी बहती रहती है और कल-कल के स्वर में अपने​ मन की पीड़ा प्रकट करती है। जब भी नदी तट के समीप पहुँचती है, उसे अपनी टक्कर मारकर अपनी पीड़ा प्रकट करती है। कवि कहता है, नदी को भी आवाज़ मिलनी चाहिए, ताकि वह भी अपने दिल को हल्का कर सके। अपनी पीड़ा कह सके। नदी बहते हुए ऐसे प्रतीत होती है, मानो कह रही हो, हे विधाता! मुझे भी स्वर दो, ताकि मैं भी अपना मन हल्का कर सकूँ।

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