Please someone explain me the summary of kabir ki sakhiyan class 9(pg 91)
कबीर कहते हैं कि ह्दय रूपा मानसरोवर के जल में साधु रूपी हंस क्रीड़ा रूपी साधना कर रहे हैं। वहाँ उन्होंने मुक्ती रूपी मुक्ताफल ( मोती ) चुग लिए हैं। वहाँ उन्हें इतना आनंद आता है कि कहीं ओर जाने का उनका मन नहीं करता है।
२ . कबीर कहते हैं कि वह अपने प्रेमी रूपी ईश्वर को ढूँढ रहे हैं , परन्तु उनका प्रेमी उन्हें कहीं नहीं मिल रहा है। वह कहते हैं प्रेमी और भक्त के मिलने पर सभी प्रकार का विष ( कष्ट ) अमृत ( सुख ) के समान हो जाएगा।
३ . कबीर कहते हैं मनुष्य को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए और सहज साधना रूपी गलिचा बिछाना चाहिए। ऐसा करने पर कुत्ता रूपी संसार भौंकता रहेगा उसे अनदेखा कर चलते रहना चाहिए। एक दिन वह स्वयं ही झक मारकर चुप हो जाएगा।
४ . कबीर कहते हैं पक्ष - विपक्ष के कारण सारा संसार आप में लड़ रहा है , वह भ्रम में पड़ते हुए प्रभु को भूल जाते हैं। जो व्यक्ति निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा रहता है , वही सही अर्थों में मनुष्य है।
५ . कबीर कहते हैं कि हिन्दू सारी उम्र राम - राम जपते हुए और मुस्लिम खुदा - खुदा कहते हुए मर जाते हैं। कबीर कहते हैं , वही मनुष्य इस संसार में जीवित के समान हैं , जो इन दोनों ही बातों से स्वयं को दूर रखता है।
६ . कबीर कहते हैं साधना की अवस्था में काबा काशी और राम रहीम के समान हो जाते हैं। जिस प्रकार गेहूँ को पीसने में वह आटा और बारीक पीसने में मैदा हो जाता है। परन्तु आते वह दोनों खाने के काम ही हैं। अर्थात दोनों ही एक ईश्वर की संताने हैं बस नाम अलग - अलग हैं।
७ . कबीर कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म लेने से किसी के कर्म ऊँचे नहीं हो जाते हैं। यदि वह बुरे कार्य करता है , तो उसका ऊँचा कुल अनदेखा कर दिया जाता है , उसी प्रकार सोने के कलश में रखी हुई शराब को साधू द्वारा निदंनीय ही कहा जाता है अर्थात शराब सोने के कलश में रखने पर भी शराब ही कहलाती है।