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राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद जैसे नाम से ही पता चलता है की इसमें इन तीनों के बीच की बातचीत को दर्शाया गया है।
'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' बालकांड से लिया गया है। यह तुलसीदास द्वारा रचित है। इस काव्यांश में सीता-स्वयंवर के समय का वर्णन है। शिव धनुष भंग होने का समाचार सुनकर परशुराम क्रोधित होकर सभा में उपस्थित हो जाते हैं। वह उस व्यक्ति पर बहुत क्रोधित होते हैं, जिसने उनके आराध्य देव शिव का धनुष तोड़ा है। वह उसे दण्ड देने के उद्देश्य से सभा में पुकारते हैं। यहीं से राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद का आरंभ होता है। स्थिति को बिगड़ती देखकर राम विनम्र भाव से उनका क्रोध शान्त करने का प्रयास करते हैं। परशुराम को राम के वचन अच्छे नहीं लगते। लक्ष्मण अपने भाई के साथ ऋषि का ऐसा व्यवहार देखकर स्वयं को रोक नहीं पाते। इस तरह इस संवाद में उनका आगमन भी हो जाता है। वह परशुराम जी पर नाना प्रकार के व्यंग्य कसते हैं। उनके व्यंग्य परशुराम को शूल के समान चुभते हैं। उनका क्रोध कम होने के स्थान पर बढ़ता जाता है। परशुराम अपने अंहकार के कारण सभी क्षत्रियों का अपमान करते हैं। लक्ष्मण को यह सहन नहीं होती। वह भी उनके कटाक्षों का उत्तर कटाक्षों में देते हैं। अंत में उनके द्वारा ऐसी अप्रिय बात बोल दी जाती है, जिसके कारण सभा में हाहाकार मच जाता है। राम स्थिति को और बिगड़ती देखकर लक्ष्मण को चुप रहने का संकेत करते हैं। वह परशुराम के क्रोध को शान्त करने का प्रयास करते हैं।
मैं आशा करती हूँ कि आपको आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।