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मित्र!
इस कहानी में लेखिका स्वयं उलझी हुई नज़र आती हैं। वह एक तरफ स्वयं के दृढ़ व्यक्तित्व को उजागर करती है परन्तु कहीं वह स्वयं को हीनभावनाओं से घिरा पाती हैं। कहानी पढ़कर समझ ही नहीं आता कि आखिर लेखिका पाठकों को क्या बताना चाहती है। अपनी जिंदगी स्वयं जीने के आधुनिक दबाव के कारण कहानी को लेखिका स्वयं के आसपास इतना केंद्रित कर देती हैं कि कई महत्वपूर्ण तथ्य पीछे छूट जाते हैं। स्वतंत्रता के संग्राम में देश की सामाजिक और राजनैतिक हलचल कहानी में नाम मात्र के लिए हैं।

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