Pls explain these 2 
I will be very thankful to you

 1-
चरन कमल बंदौ हरि राई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै ,
अंधे कों सब कछु दरसाई॥
बहिरो सुनै , मूक पुनि बोलै ,
 रंक चले सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय ,
बार-बार बंदौं तेहि पाई॥
 
2-
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत।
मनिमय कनक नंद कैं आँगन ,
बिंब पकरिबैं धावत।
कबहुँ निरखि हरि आपु छाँह कौं ,
कर सौं पकरन चाहत।
किलकि हँसत राजत द्वै दंतियाँ ,
पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत।
कनक-भूमि पर कर-पग-छाया ,
यह उपमा इक राजति।
प्रतिकर ` प्रतिपद ` प्रतिमान बसुधा ,
कमल बैठकी ` साजति `
बालदसा सुख निरखि जसोदा ,
पुनि-पुनि बंद बुलावत।
अँचरा तर लै ढाँकि ,
सूर के प्रभु कौं दूध पियावति।

मित्र!
हम आपके प्रथम दोहे का अर्थ दे चुके हैं। अब हम आपके दूसरे दोहे का अर्थ दे रहे हैं।


बाल श्रीकृष्ण अपने आंगन में घुटनों के बल चल रहे हैं। नंद का आंगन स्वर्ण जड़ित है। बाल श्रीकृष्ण अपनी परछाई को पकड़ने के लिए दौड़ रहे हैं। वह अपनी परछाई को देखते हैं और उसको पकड़ना चाहते हैं। इस प्रक्रिया में जब वह पकड़ नहीं पाते हैं तो उनकी किलकारियों से पूरा आंगन गूंजता है और उनके सफेद दांत दूध की तरह चमकने लगते हैं। बालकृष्ण की इस दशा का सुख यशोदा अकेले नहीं भोगना चाहती इसलिए बार-बार वह नंद बाबा को बुलाती है और उनको श्री कृष्ण की लीला दिखाती है।

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