pls.. give he short summary of the chapter 'bus ki yatra'
बस की हालत बहुत ही खस्ता थी। लेखक के अनुसार उस बस के अंदर बैठना अपने प्राणों का बलिदान देने जैसा था और उसका हिस्सेदार - साहब तो पूरे रास्ते उस बस की तारीफ़ों के पुल बाँधते रहे थे। उसकी बातें सुनकर तो उनको ये लग रहा था कि ये नई बस हो। जब गिरते - पड़ते वह बस चल रही थी , तो नाले के ऊपर पूलिया पर उसके खराब हो जाने पर सबके प्राण संकट में पड़ सकते थे। लेखक के अनुसार अगर बस स्पीड पर होती तो पूरी बस नाले पर जा गिरती , पर बस का मालिक था कि वो बस की खस्ता हालत में भी उसे चला रहा था पर उससे ये न हो सका कि वो बस के टायर ही नए लगवा लेता। लेखक को लगा हम सबसे महान तो ये है जो इसकी ऐसी हालत देखकर भी इस बस से यात्रा करने में तनिक भी घबराया नहीं। वाकई में ये काबिले - तारीफ़ है कि प्राणों की परवाह न कर इस पर बैठा है। तो उसकी उस पर विशेष श्रद्धा जाग गई।