Pls. Give meaning of this doha.

हे हरि ! कस न हरहु भ्रम भारी ।
जद्यपि मृषा सत्य भासै जबलगि नहिं कृपा तुम्हारी
अर्थ अबिद्यमान जानिय संसृति नहिं जाइ गोसाईं ।
बिन बाँधे निज हठ सठ परबस पर्यो कीरकी नाईं
सपने ब्याधि बिबिध बाधा जनु मृत्यु उपस्थित आई ।
बैद अनेक उपाय करै जागे बिनु पीर न जाई
श्रुति - गुरु - साधु - समृति - संमत यह दृश्य असत दुखकारी ।
तेहि बिनु तजे , भजे बिनु रघुपति , बिपति सकै को टारी
बहु उपाय संसार - तरन कहँ , बिमल गिरा श्रुति गावै ।
तुलसिदास मैं - मोर गये बिनु जिउ सुख कबहुँ न पावै 
तुलसीदास 

 मित्र!

हम इस दोहे का भावार्थ दे रहे हैं। आप इसकी सहायता से अपना उत्तर पूरा कर सकते हैं-

हे भगवान! आप मेरा भ्रम दूर क्यों नहीं करते कि यह संसार सत्य नहीं है। यह सब झूठ है। प्रभू मैं अपने ही मोहपाश में बंध जाता हूँ। मुझे पता है कि  मेरा यह शरीर, मेरे पुत्र, मेरा पैसा इत्यादि कुछ भी सच नहीं है। आपकी जब कृपा होगी तब ही मुझे इस मोह से छुटकारा मिलेगा। 

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