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मित्र कविता के अंत में सुखिया के पिता की संवेदना को लेखक ने एक प्रश्न के रूप में प्रकट किया है। जब वह कारावास से लौटकर आता है तो उसकी पुत्री महामारी का ग्रास बन चुकी होती है। उसे अपनी पुत्री के अन्तिम दर्शन भी नहीं होते। कवि सुखिया के पिता के माध्यम से यह प्रश्न समाज के समाने रखते हैं कि सारी सृष्टि का निर्माण भगवान ने किया है, उसके लिए सब मनुष्य बराबर हैं तो हम कौन होते हैं उसे ऊँच-नीच के बंधनों में डालने वाले। हमें यह अधिकार किसने दिया है कि हम भगवान के मंदिर में किसी को प्रवेश करने से रोकें।