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प्रिय विद्यार्थी , 

आपके प्रश्न का उत्तर है -
एक बच्चे को शिक्षा देकर उसका मार्गदर्शन करना शिक्षक का कार्य होता है। शिक्षक ही छात्र को सही दिशा दिखाता है। ये दोनों शिक्षा रूपी धागे से आपस में जुड़े होते हैं। शिक्षक और शिक्षार्थी के संबंधों की परंपरा बहुत पुरानी है । पुराने जमाने से ही गुरु और शिष्य का रिश्ता बहुत ही पवित्र और अनमोल माना जाता है । कबीर ने तो अपने दोहे में गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा स्थान दिया है । एक व्यक्ति के जीवन में उसके शिक्षक अथवा गुरु का बहुत बड़ा योगदान होता है । एक शिक्षक साधारण से छात्र को भी परिश्रमी, बुद्धिमान व योग्य बना देता है। 
एक छात्र का कर्त्तव्य होना चाहिए कि वह अपने शिक्षक की बातों को ध्यान से सुने, उनकी आज्ञा का पालन करे, विद्यालय के अनुशासन को बनाए रखे, कक्षा में पढ़ाए पाठ को दुबारा पढ़े ।  शिक्षक का मान-सम्मान करे । शिक्षक के लिए आवश्यक है कि छात्र के साथ सहयोग बनाए रखे। पाठ को रुचिकर बनाए ताकि छात्र पूरी तरह उसमें रुचि ले सकें । उनसे मित्रता कायम करे । उनको अपना भरपूर सहयोग दे । विद्यार्थियों से स्नेह करें और उनकी समस्याओं और कठिनाईयों को हल करने में उनकी सहायता करे । 
आजकल शिक्षकों ने शिक्षा को व्यवसाय बना लिया है। ज़्यादा पैसे लेकर ट्यूशन पढ़ाते हैं और छात्रों को ऐसा करने के लिए मजबूर करते हैं। अत: आज की आवश्यकता यही है कि छात्र और शिक्षक दोनों ही अपने-अपने कर्त्तव्यों का पालन ठीक से करें ताकि उनके संबंध अच्छे बने रहें। छात्र जो आजकल शिक्षकों का आदर करना भूल गए हैं, वे उन्हें पूरा मान-सम्मान दें। इसके लिए शिक्षक को चाहिए कि वे वाणी से मधुर बोलें तथा व्यवहार में शिष्टता बनाए रखें। शिक्षक, विद्यार्थियों की 'आत्मशक्ति' को पहचाने में सक्षम होना चाहिए। यह सब तभी संभव है, जब विद्यालय में गुरुकुल जैसा शांत वातावरण हो, स्वाभिमानी, तेजस्वी व तपस्वी शिक्षक हो और राजनीति से शिक्षा दूर हो।

इस आधार पर आप अपना अनुच्छेद लिख सकते हैं । 

आभार । 

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