plz give me synopsis and moral of dis chptr - Manviya karuna ki divya chamak....

यह पाठ हिन्दी प्रेमी फ़ादर बुल्के जी को समर्पित है। लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने इस पाठ में फ़ादर बुल्के के जीवन को उकेरने का प्रयास किया है। बुल्के जी का जन्म बेल्ज़ियम के रेम्सचैपल शहर में हुआ था। परन्तु सन्यास की दीक्षा लेने के पश्चात उन्होंने भारत को अपना कर्म स्थान बना लिया। अपनी अन्तिम साँस भी उन्होंने यहीं पर ली। वह एक सद्चरित व स्नेही स्वभाव के व्यक्ति थे। उनका स्वभाव ऐसा था कि एक बार जिससे उनका परिचय हो जाए, वह उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। वह सभी पर अपार प्रेम और वात्सल्य की वर्षा करते थे। उनसे अलग होने की कल्पना करना कष्टदायक था। फ़ादर बुल्के कहने के लिए इस देश के नहीं थे परन्तु सही अर्थों में वही एक सच्चे भारतीय थे। फ़ादर बुल्के को एक भारतीय द्वारा हिन्दी ठीक से नहीं बोलना अखरता था। उनके अनुसार यह हिन्दी का अपमान था, जो उन्हें दुखी करता था। भारत में रहते हुए उन्होंने हिन्दी को अपना लक्ष्य बनाया। एक विदेशी होने के बाद भी उन्होंने हिन्दी के प्रचार-प्रसार, विकास, वृद्धि और सम्मान के लिए जो कार्य किए वह अविस्मरणीय हैं। ऐसे थे फ़ादर बुल्के, जिन्होंने पराए देश के लोगों और वहाँ की भाषा को इतना प्रेम और स्नेह दिया कि भारतीयों के लिए वह मानवीय करुणा की दिव्य चमक के समान हो गए। उनके इस योगदान के लिए भारत और यहाँ के लोग सदैव उनके आभारी रहेगें।

  • 3
What are you looking for?