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'मेघ आए बड़े बन के ठन' के कविता में कवि ने मेघों के कारण वातावरण हो रही उथल-पुथल का बड़ा ही सुन्दर वर्णन, कविता रूप में किया है। कवि को मेघ गाँव में बहुत दिनों के बाद अपनी ससुराल आए दामाद के समान प्रतीत होते हैं। दामाद के आने पर गाँव में स्त्रियाँ भागकर यह संदेश पूरे गाँव में फैला देती है वैसी ही आकाश में बादलों के छाने से धूल भरी आंधी चल रही है जो की सबको उनके आने का संदेश प्रसारित कर रही है। दामाद को देखने के लिए घरों से स्त्रियाँ अपनी खिड़कियाँ खोलकर देखने लगती है वैसे ही हवा से घरों की खिड़कियाँ हिल रही है मानो दामाद को देखने के लिए खुल रही हैं। दामाद को देखकर जिस तरह औरतें शरमा कर ठिठक जाती है वैसी ही मेघ को देखकर नदी ठिठक व शरमा गई है। पेड़ तेज़ हवा के कारण झुक रहे हैं मानो घर के बड़े-बूढ़े लोग दामाद का स्वागत कर रहे हैं। हवा से लता हिल रही है मानो शिकायत कर रही हो की बहुत दिनों के बाद यहाँ पर आना हुआ है। हवा से तालाब का पानी उछल रहा है मानो दामाद का पैर धोने के लिए लाया गया पानी का परात हो। आकाश में मेघों के आने से चारों तरफ़ अंधेरा गहरा गया है और तेज़ बिचली चमक रही है जो की शिकायत के समान प्रतीत हो रही है। तभी आकाश तेज़ बारिश होने लगती है मानो नाराज़गी समाप्त हो गई है और मिलन के आँसू आँखों से बह रहे हैं।

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