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मित्र

उत्तराँचल स्थित 'बारसू' में बड़े पहाड़ों पर जाने का अवसर मुझे मिला। शाम को जब मैं घर सेेे बाहर निकला तो बाहर शाम हो चुकी थी।  मेरी आँखों के सामने बर्फ़ से ढके पहाड़ अद्वितीय लग रहे थे। हल्की मीठी ठंड ने मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर दी और मेरा मन प्रसन्नता से भर गया। चारों ओर ऐसा प्रतीत होता था। मानो प्रकृति ने अपने खजाने को बिखेर दिया हो, चारों ओर मखमल-सी बिछी घास, बड़े और ऊँचे-ऊँचे वृक्ष ऐसे प्रतीत होते थे मानो सशस्त्र सैनिक उस रम्य वाटिका के पहरेदार हैं। जहाँ भी आँखें दौड़ाओ वहीं सौंदर्य का खजाना दिखाई देता था। ये पर्वतीय क्षेत्र हमारे मैदानी जीवन के दाता हैं। वर्षा के पानी को रोकना तथा बर्फ़ बना उसे भविष्य के लिए जमा करके रखना इन्हीं पर्वतों का काम है। यही देखते देखते कब रात हो गई मुझे पता ही नहीं चला।

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