pne vidyalay ki visheshta batate hue apni sakhi ko patr likhiye


मित्र हम आपको इस पत्र का उदाहरण दे रहे हैं। आशा करते हैं कि वह आपकी सहायता करेगा।

बिशप कॉटन स्कूल,
शिमला।
दिनांक:  8 जून

प्रिय मित्र राम,
मधुर स्नेह
!
कल तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ। पिछले पत्र में तुमने मेरे विद्यालय के बारे में पूछा था। पत्र पढ़कर ज्ञात हुआ कि तुम मेरे लिए चिंतित भी हो। तुम्हारे सभी प्रश्नों के उत्तर में अपने इस पत्र में दे रहा हूँ।

मेरा स्कूल 'बिशप कॉटन स्कूल' के नाम से जाना जाता है। यह शिमला के बेहतरीन स्कूलों में से एक है। इस स्कूल में लोकप्रिय लेखक 'रस्किन बॉन्ड' ने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की थी। मेरा स्कूल एशिया के सबसे पुराने बोर्डिंग स्कूलों में से एक है। इसको स्थापित हुए 152 साल हो गए हैं। हमारा विद्यालय अपने उच्च शैक्षिक स्तर और अनुशासन के लिए प्रसिद्ध है। यह शिमला की सुंदर वादियों में स्थित है। यह ऐसा पहला स्कूल है, जिसने भारत में संगठित स्तर पर खेल-कूद प्रतियोगिताओं की प्रीफेक्ट सिस्टम और हाउस सिस्टम का आरंभ तब किया था, जब वह इंग्लैंड में अस्तित्व में आई थीं। हमारा विद्यालय बहुत बड़ा है। यहाँ आकर मेरी हर प्रकार की शंकाएँ समाप्त हो गई। मुझे लगा था कि मैं यहाँ कैसे रह पाऊँगा परन्तु यहाँ के स्टाफ और अन्य सहपाठियों ने इस शंका को मिटा दिया। मित्र छात्रावास में रहने का अपना ही मज़ा है। यहाँ का रहन-सहन, जीवन तथा वातावरण बहुत भिन्न है।

प्रकृति वातावरण में पढ़ना और रहना बड़ा रोचक है। इनके मध्य कभी अकेलापन नहीं होता है। जहाँ देखों वहाँ प्रकृति दृश्य मन को आराम देते हैं। विद्यालय में नियम बहुत कठोर हैं। परन्तु इन नियमों में रहकर जीने का अपना आनंद है। मैं रोज़ सुबह जल्दी उठा जाता हूँ। हम सभी मित्र यहाँ साथ मिलकर नाहते, खाते, विद्यालय जाते हैं। उसके बाद विद्यालय से आकर साथ में फिर खाते हैं तथा टी.वी. देखते हैं। क्योंकि यहाँ पर हमारा परिवार नहीं होता है इसलिए हम एक परिवार की भांति है। एक कमरे में सबके साथ टी.वी. देखना बहुत अच्छा लगता है। हमारे खेलने का समय भी निश्चित है। अतः हम बहुत तरह के खेल खेलते हैं। यहाँ तक की हम बाहर जाते हैं, तो बहुत मस्ती भी करते हैं। हम स्वयं अपने काम करते हैं। हमें अपने कामों के लिए किसी पर निर्भर नहीं होना पड़ता है। मेरे स्वभाव में इस कारण से स्थिरता आई हैं। चंचलपन समाप्त हो गया है। अनुशासन के कारण मुझे हर कार्य समय में करने की आदत हो गई, इस कारण माता-पिता तक मेरी सरहाना करने लगे हैं। अब में परिवार के मूल्य को भी समझ पाया हूँ। छात्रावास मैं तुम नहीं हो इस बात का अवश्य दुख है। परन्तु मैं यहाँ अकेला नहीं हूँ, तुम्हारे ही समान बहुत से मित्र हैं, जो मेरे साथ हैं। और ऐसे अध्यापक तथा अध्यापिकाएँ जो हमारा ध्यान रखते हैं। अच्छा पत्र रखता हूँ और आशा करता हूँ कि तुम मुझे शीघ्र जवाब भेजोगे।

तुम्हारा मित्र,
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