"prem na jane kujat,bhukh na jane kchidi bhaat" ka arth path ke adhar par spast kijiye.

प्रेम न जाने कुजात, भुख न जाने खिचड़ी भात का भाव/अर्थ है की-
प्रेम करने से पहले मनुष्य जात देखकर प्रेम नहीं करता है। जब मनुष्य किसी से प्रेम करता है तो यह नहीं समझता कि जिससे वह प्रेम करता है, वह किसी बड़ी जाति का है या छोटी जाति का, वह हिन्दु है या मुसलमान या कोई और उसके लिए तो उसका प्रेमी जात-पात और धर्म से बढ़कर होता है इसलिए कहा गया है कि प्रेम न जाने कुजात । मनुष्य खाना खाने में तरह-तरह के नखरे करता है लेकिन यदि उसे बड़ी जोर की भुख लगी हो तो उसके आगे भात के स्थान पर खिचड़ी रख दी जाए तो वह उसे भी बड़े मजे व स्वाद लेकर खाता है चाहे उसे यह पंसद न हो। उसके लिए तो अपनी सुधा (भुख) को शांत करना ज्यादा जरूरी होता है। तभी कहा गया है भुख न जाने खिचड़ी भात का।
 
आशा करती हूँ कि आपको, आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
 
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