Premchand ko dekhte hi lekhak ki Drishti kaha tik gayi or usne kya anumaan lagaya

 प्रिय विद्यार्थी , प्रेमचंद जी को देखते ही लेखक की दृष्टि उनके जूते पर अटक गईउन्होंने देखा कि दाहिने पांव का जूता ठीक है, मगर बाएं जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अंगुली बाहर निकल आई है।
 लेखक सोचता है कि ‘फ़ोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि नहीं, 'इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’'इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है। यह जैसा है, वैसा ही फोटो में खिंच जाता है।'

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Premchand ke phate jute
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