pustake- safalta ki kunji, par anucched

पुस्तकालय का निर्माण दो शब्दों के योग से होता है पुस्तक+आलय अर्थात पुस्तकों का घर। पुस्तकों का मनुष्य के जीवन में बचपन से ही आगमन हो जाता है। अपनी आयु के अनुसार वह पुस्तकें पढ़ता है। जैसे-जैसे उसकी आयु बढ़ती जाती है, पुस्तकों का क्षेत्र बढ़ता जाता है। अब पुस्तकें उसके विषय या कक्षा तक सीमित नहीं रह जाती है। वह अपनी रुचि के अनुसार अन्य विषयों पर भी पुस्तकें पढ़ता है। पुस्तकों में बढ़ती रुचि उसको पुस्तकालय बनाने की प्रेरणा देती हैं। पुस्तकालय दो प्रकार के होते हैं- व्यक्तिगत तथा सामूहिक। व्यक्तिगत पुस्तकालय के अंदर किसी व्यक्ति द्वारा संग्रहित पुस्तक होती हैं इसलिए इसे अन्य कोई बिना उसकी आज्ञा के प्रयोग नहीं कर सकता है। यह अधिकतर घरों में बनाए जाते हैं। सामूहिक पुस्तकालय वे होते हैं, जिसका प्रयोग हर कोई कर सकता है। ये सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा बनाए जाते हैं। कुछ शुल्क देकर इनका प्रयोग किया जा सकता है।
 

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