rahim ke dohe jaise kabir ke dohe (with meaning)arth ke sath

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

अर्थ :जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला. जब मैंनेअपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है.

  • 8

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

अर्थ :बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँचगए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यारके केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूपपहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा.

  • 3

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,

सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

अर्थ :इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होताहै. जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे.

  • 4

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

अर्थ :मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़ेपानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा !

  • 1

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

अर्थ :सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए. तलवार का मूल्य होताहै न कि उसकी मयान का उसे ढकने वाले खोल का.

  • 2

कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर.

अर्थ :इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो औरसंसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न हो !

  • 3

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,

अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

अर्थ :यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसेअपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत.

  • 2

कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई. बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई.

अर्थ :कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गए. बगुला उनका भेद नहीं जानता, परन्तु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है. इसका अर्थ यह है कि किसी भीवस्तु का महत्व जानकारही जानता है।

  • 4

कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन. कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन.

अर्थ :कहते सुनते सब दिन निकल गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया. कबीर कहते हैं कि अब भीयह मन होश में नहीं आता. आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है.

  • 2

कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस. ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस.

अर्थ :कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तूक्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है. मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले.

  • 2

जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई. जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई.

अर्थ :कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो गुण की कीमत होती है. पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है.

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