ram lakshman parushuram ke samvad ko hindi mein dialogues ke roop mein dijiye

मित्र,

नाटक में सूत्रधार बहुत महत्वपूर्ण होता है। सूत्रधार द्वारा ही नाटक का आंरभ और अंत किया जाता है। सूत्रधार कभी परदे के पीछे रहकर और कभी सामने आकर कहानी को आगे बढ़ाता है। यह दर्शकों, अभिनेताओं और नाटक के बीच में सूत्र जोड़ने का कार्य करता है। सूत्रधार ज्ञानी, वेशभूषा बदलने में निपूर्ण, समाज को गहराई से जानने वाला, गायक, सभी भाषाओं में परांगत, विद्वान व्यक्ति होता है। 

आपको पूरा नाटक लिखकर नहीं दिया जा सकता है। आपके लिए नाटक का आरंभ करके दे रहे हैं बाकी आप इसे स्वयं करने का प्रयास करें-

रंगमंच का पर्दा उठता है। सभा का दृश्य दिखाई देता है। हर्ष के साथ-साथ राजा जनक सिंहासन पर चिंतित बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं। सभा में उपस्थित सभी सभासदों के मुखों पर भी हर्ष और चिंता के मिले-जुले भावों को देखा जा सकता है। सभा में उपस्थित सभी राजकुमार लज्जित से दिखाई पड़ रहे हैं। विश्वामित्र  लक्ष्मण के साथ राजा के निकट बैठे हैं। राम चुपचाप खड़े हैं और धनुष दो टुकड़े होकर धरती पर पड़ा है।

तभी सूत्रधार प्रवेश करता है-

सूत्रधार- अरे! आप क्यों हैरान हैं। राम ने धनुष तोड़ा है। सीता मुख भी लज्जावश लाल है। जो माँगा वर रूप में वही स्वयंर विजेता है। यही तो विधाता की लेखनी थी कि सीयावर आज राम हैं। देखो-देखो कौन आ रहा? महल के मुख्यद्वार पर आँखों में ज्वाला उनके हाथों में काल है। आओ देखते हैं नाटक आगे क्या रूप लेता है।

सूत्रधार चला जाता है। तभी सभा में बादल के समान एक भंयकर गर्जना-सा स्वर सबके कानों में पड़ता है।

परशुराम- (क्रोध में) किसने किया इतना बड़ा अनर्थ? मेरे आराध्य देव का धनुष किस दुष्ट द्वारा तोड़ा गया है। 

राम- (विनम्र वचनों के साथ) प्रभु यह धनुष आपके ही किसी सेवक द्वारा तोड़ा गया होगा। अन्यथा किसमें इतना बल है, जो इस धनुष को तोड़ सके।

परशुराम- (क्रोध में काँपते हुए) चुपकर! हे मूर्ख बालक। मुझसे मुँह चलाता है। ऐसा व्यक्ति मेरा सेवक नहीं अपितु मेरे शत्रु के समान है।

  • 1
What are you looking for?