rupak and utpreksha alankar is missing.........please complete the content,i need it before 18/9/13

रूपक अलंकार:- जहाँ गुण में बहुत अधिक समानता होने से उपमेय और उपमान के बीच में अंतर नहीं रहता, वहाँ रूपक अलंकार होता है; जैसे-

(क) जटिल तानों के जंगल में

(यहाँ जटिल तानों को जंगल के समान बताया गया है। जिस प्रकार जंगल में जाकर मनुष्य खो जाता है, वैसे ही गायक जटिल तानों में फंसकर खो जाता है। इसलिए दोनों में गुण के आधार पर समानता होने के कारण इनके मध्य का अंतर समाप्त हो गया है। अत: हम कह सकते हैं कि यहाँ रूपक अलंकार है।)

उत्प्रेक्षा अलंकार:- जहाँ उपमेय में उपमान की कल्पना या संभावना व्यक्त की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। रूपक अलंकार में गुण के आधार पर दो वस्तुओं के मध्य अंदर समाप्त हो जाता है तथा वे एक हो जाते हैं। परन्तु उत्प्रेक्षा में कल्पना या संभावना की जाती है कि वह एक हैं या लग रहे हैं। इसके वाचक शब्दों द्वारा इसे पहचाना सरल होता है। इसके वाचक शब्द इस प्रकार हैं- मनो, मानो, जानो, जनु, मनहु, मनु, जानहु, ज्यों, त्यों आदि हैं। पर यह आवश्यक नहीं है कि हर जगह वाचक शब्दों का प्रयोग हुआ ही हो।

इसके उदाहरण इस प्रकार हैं-

(क) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल

(इसमें बच्चे का छूना अर्थात उसके स्पर्श की संभावना शेफालिका के फूलों के झरने के समान की गई है।)

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