"Sadhu mein ninda sahan karne se vinayshilta aati hain" tatha "Vyakti ko mithi aur kalyankari vani bolni chahiya"- In vishayo ke bare mein likhiye vistar mein.

मनुष्य जब साधु बनता है तो उसे साधुत्व का ध्यान रखना पड़ता है। कहा जाता है एक साधु का स्वयं में संयम होना परम आवश्यक है। माया, लोभ, मोह और क्रोध से उसे कोसों दूर रहना चाहिए। एक साधु का परम गुण होता है, सहनशीलता। सहनशीलता ऐसी ही नहीं आती है। सहनशीलता के लिए मनुष्य को स्वयं में संयम बनाए रखना पड़ता है। सहनशीलता साधु का गहना है और सहनशीलता ही उसमें विनयशीलता को उत्पन्न करती है। कोई उसे मारे, अपशब्द कहे, उसकी निंदा करे, उसका अहित करे या उसे दुत्कारे, उसे उसका प्रतिकार नहीं करना चाहिए। वह जितना संयमी बनेगा, सहनशीलता उतना ही बढ़ेगी और वह इसके बाद भी सबसे विनय और प्रेम से बात करेगा तो विनयशीलता उसके आचरण में घुलती जाएगी। उदाहरण के लिए यदि हमें कोई एक मारे, तो हम जवाब में उसे दो मारेंगे। लेकिन साधु के लिए उसे वापस जवाब देना, अपने आचरण के विरूद्ध करना होगा। उसका कार्य है समाज को अपनी शिक्षाओं से सही मार्गदर्शन करना। यदि वह स्वयं ऐसा करेगा तो कौन उसकी बात को मानेगा। गांधी जी भी एक साधु ही थे। उनका मानना था कि यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर मारे तो अपना दूसरा गाल आगे कर दो। यह सहनशीलता का ही परिचय है। थप्पड़ दोबारा खाना सहनशीलता को दर्शाता है और उसके बाद भी प्यार से बातें करना तथा उसके साथ विनम्र बने रहना विनयशीलता का उदाहरण है।

 

मनुष्य के जीवन में वाणी का बहुत महत्व होता है। वाणी उसके व्यक्तित्व को निखारने का कार्य करती है। यह वाणी है जिसके द्वारा मनुष्य अन्य लोगों से संबंध स्थापित करता है। अपने मन के भावों और विचारों का आदान-प्रदान भी वाणी के कारण ही संभव हो पाया है। विद्वानों के अनुसार यदि मनुष्य सबको अपना मित्र बनाना चाहता है, तो उसे अपनी वाणी मीठी रखनी चाहिए। मीठी वाणी से वह अपने शत्रुओं को भी परास्त कर सकता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण कौआ और कोयल हैं। कौआ किसी का अहित नहीं करता है और कोयल किसी का हित नहीं करती है। परन्तु लोग कौए का स्वर सुनते ही मुँह बना लेते हैं और कोयल की कू-कू सुनते ही मंत्र-मुग्ध हो जाते हैं। यह वाणी का ही प्रताप है जो कि लोग कोयल का मधुर स्वर सुनकर उसकी प्रंशसा करने लगते हैं। जबकि कौआ और कोयल दोनों काले होते हैं। विद्वानों के अनुसार वाणी ऐसी होनी चाहिए जो कि दूसरों का मन हर ले। जो वाणी मित्र के स्थान पर शत्रुओं की संख्या में बढ़ोतरी करे, ऐसे में न बोलना ही उचित है। लोगों के अनुसार मीठी वाणी औषधी के समान कार्य करती है और कठोर वाणी तीर के समान कार्य करती है। अत: सही कहा गया है कि मनुष्य को मीठा ही बोलना चाहिए।

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