sampradayicta par nibandh quickly please

भारत में विभिन्न संप्रदाय विद्यमान हैं। इन संप्रदायों के बीच आज भी सांप्रदायिक अलगाव की झलक यदा - कदा देखने को मिल जाती है। सांप्रदायिकता देश की एकता और अखण्डता के लिए खतरनाक हथियार के समान है। लोकतंत्र के लिए भी सांप्रदायिकता उचित नहीं है। जहाँ सांप्रदायिकता का विष रहेगा , वहाँ लोकतंत्र साँस नहीं ले सकता है। लोकतंत्र सभी धर्मों और जातियों को जीने का समान अवसर देता है। एक देश के विकास के लिए भी सांप्रदायिकता बाधक है। भारत में सांप्रदायिकता के बीज अंग्रेज़ों द्वारा बोए गए थे। स्वतंत्रता के समय में भारत में एक ऐसी स्थिति विद्यमान हो गई थी कि सभी संप्रदायों में आपस में अलगाव उत्पन्न हो गया था। ये अलगाव विकराल रूप ले चुके थे। महात्मा गाँधी ने इन अलगावों को समाप्त करने का प्रयास किया। उनके अनुसार चाहे विभिन्न संप्रदाय के लोग होंं या अन्य जातियों के सब एक समान हैं। उन्होंने स्वतंत्र भारत की छत के नीचे सांप्रदायिक सद्भावना को महत्व दिया। वे चाहते थे कि भारत में सभी संप्रदाय आपस में हिल - मिलकर रहेंं इसलिए कभी भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित नहीं किया गया। ऐसा करने से भारत में रहने वाले अन्य संप्रदायों को धक्का पहुँचता और यह सांप्रदायिक सद्भावना के मार्ग को अवरूद्ध करता। उनका ये प्रयास सफल भी रहा। सांप्रदायिक सद्भावना के अंदर सभी धर्मों को आपस में प्रेम से रहने और एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना को विकसित करने का प्रयास किया जाता है। इससे दोनों धर्मों के लोगों के बीच उदारता को बढ़ावा मिलता है और तनाव को कम किया जा सकता है। भारत सरकार इस प्रकार की हिंसा को रोकने के लिए बहुत प्रयास कर रही है। वह सदैव सांप्रदायिक सद्भावना को विशेष महत्व देती है। हमें भी इस ओर कदम उठाने चाहिएँ। जब तक देश का प्रत्येक नागरिक यह नहीं समझेगा कि सांप्रदायिकता उसके और देश के लिए सही नहीं है , तब तक देश इस बीमारी से मुक्त नहीं हो सकता है।

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