Sham ek kisan ka pratipadyaa
मित्र
'श्याम‐एक किसान' में कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने प्रकृति को मानवीय रूप में व्यवहार करते हुए दर्शाया है। इस कविता के माध्यम से प्रकृति का इतना सुंदर रूप प्रस्तुत किया गया है, जो मन को मोह लेता है। कविता में कवि की सुंदर कल्पनाशीलता का पता चलता है। इस कविता में कवि पहाड़ की तुलना एक किसान से करता है। पहाड़ के नीचे से बहती हुई नदी कवि को किसान के घुटनों में रखे कंबल के समान लगता है। पहाड़ के ऊपर छाया आकाश उसे किसान के सर पर बंधा हुआ साफा लगता है, पलाश के पेड़ पर खिले हुए लाल रंग के फूल उसे जलती हुए अँगीठी के समान और पूर्व दिशा में छा रहा घना अंधकार भेड़ों के झुंड के समान दिखाई देता है। इस पूरी कविता में कवि ने प्रकृति का बड़ा सुन्दर चित्रण किया है। यह आभास ही नहीं होता कि वह प्रकृति के बारे में कह रहा है या मनुष्य के बारे में।
'श्याम‐एक किसान' में कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने प्रकृति को मानवीय रूप में व्यवहार करते हुए दर्शाया है। इस कविता के माध्यम से प्रकृति का इतना सुंदर रूप प्रस्तुत किया गया है, जो मन को मोह लेता है। कविता में कवि की सुंदर कल्पनाशीलता का पता चलता है। इस कविता में कवि पहाड़ की तुलना एक किसान से करता है। पहाड़ के नीचे से बहती हुई नदी कवि को किसान के घुटनों में रखे कंबल के समान लगता है। पहाड़ के ऊपर छाया आकाश उसे किसान के सर पर बंधा हुआ साफा लगता है, पलाश के पेड़ पर खिले हुए लाल रंग के फूल उसे जलती हुए अँगीठी के समान और पूर्व दिशा में छा रहा घना अंधकार भेड़ों के झुंड के समान दिखाई देता है। इस पूरी कविता में कवि ने प्रकृति का बड़ा सुन्दर चित्रण किया है। यह आभास ही नहीं होता कि वह प्रकृति के बारे में कह रहा है या मनुष्य के बारे में।