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उनको प्रणाम!
कृत-कृत्य नहीं जो हो पाए,
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल
कुछ ही दिन बीते हैं, फिर भी
यह दुनिया जिनको गई भूल!
उनको प्रणाम!
थी उम्र साधना, पर जिनका
जीवन नाटक दु:खांत हुआ;
था जन्म-काल में सिंह लग्न
पर कुसमय ही देहाँत हुआ!
उनको प्रणाम!
1. जो उच्च शिखर की ओर बढ़े में उच्च शिखर किसका प्रतीक है, ऐसे लोगों को क्या परिणाम झेलना पड़ा?
2. 'प्रत्युत फाँसी पर गए झूल' पंक्ति में किनकी ओर संकेत है? उन्हें लोगों से कैसा व्यवहार मिला?
3. कवि किन लोगों को प्रणाम कर रहा है?
4. जीवन नाटक दुखांत होने का क्या भाव है?
5. जीवन-नाटक में कौनसा अलंकार है?
 

मित्र!
आपके प्रश्न के उत्तर में हम अपने विचार दे रहे हैं। आप इनकी सहायता से अपना उत्तर पूरा कर सकते हैं।

1- देश को आजाद करने वाले और सामंती व्यवस्था के विरुद्ध बिगुल बजाने वालों का प्रतीक है। ऐसे लोगों को या तो मार दिया गया या जेल भेज दिया गया।
2- `प्रत्युत फाँसी पर गए झूल` पंक्ति में भगत सिंह की ओर संकेत है। उन्हें लोग भूलने लगे थे।
3- कवि देशभक्तों और सामंती व्यवस्था के विरुद्ध बिगुल बजाने वालों को प्रणाम कर रहा है।
4- कवि छोटी उम्र में देश के लिए फांसी चढ़ने वालों की बात कर रहा है जैसे भगतसिंह। इस पंक्ति का यही भाव है।
5- रूपक अलंकार है।

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