Solve this:
मित्र!
धर्म का स्वरूप वह नहीं है, जो आज हम समझते हैं। धर्म का स्वरूप हमारे अंदर व्याप्त मानवता से है। मनुष्य जब किसी घायल व्यक्ति को बचाता है, तो वह धर्म है और जब वह उसे घायल अवस्था में छोड़कर चला जाता है, तो वह अधर्म है। पूजा, पाठ, तीर्थ इत्यादि नियम हैं। ये धर्म नहीं है।
धर्म का स्वरूप वह नहीं है, जो आज हम समझते हैं। धर्म का स्वरूप हमारे अंदर व्याप्त मानवता से है। मनुष्य जब किसी घायल व्यक्ति को बचाता है, तो वह धर्म है और जब वह उसे घायल अवस्था में छोड़कर चला जाता है, तो वह अधर्म है। पूजा, पाठ, तीर्थ इत्यादि नियम हैं। ये धर्म नहीं है।