student life and displane

नमस्कार मित्र!
''अनुशासन सफलता की कुंजी है'' किसी ने सही कहा है। अनुशासन मनुष्य के विकास के लिए बहुत आवश्यक है। यदि मनुष्य अनुशासन से जीवनयापन करता है, तो वह स्वयं के लिए सुखद और उज्जवल भविष्य की राह निर्धारित करता है। मनुष्य द्वारा नियमों में रहकर नियमित रूप से अपने कार्य को करना अनुशासन कहलाता है। यदि किसी के अंदर अनुशासनहीनता होती है, तो वह स्वयं के लिए कठिनाईयों की खाई खोद डालता है। विद्यार्थी हमारे देश का मुख्य आधार स्तंभ है। यदि इनमें अनुशासन की कमी होगी, तो हम सोच सकते हैं कि देश का भविष्य कैसा होगा।
विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का बहुत महत्व होता है। यदि उसके जीवन में अनुशासन नहीं होगा, तो वह जीवन की दौड़ में सबसे पिछड़ जाएगा। उसकी अनुशासनहीनता उसे असफल बना देगी। विद्यार्थी के लिए अनुशासन में रहना और अपने सभी कार्यों को व्यवस्थित रूप से करना बहुत आवश्यक है। यह वह मार्ग है, जो उसे जीवन में सफलता प्राप्त करवाता है। विद्यार्थियों को बचपन से ही अनुशासन में रखना आवश्यक है। अनुशासन में रहने की सीख उसे अपने घर से ही प्राप्त होती है। विद्यार्थी को चाहिए कि विद्यालय में रहकर विद्यालय के बनाए सभी नियमों का पालन करें। अध्यापकों द्वारा पढ़ाए जा रहे सभी पाठों का अध्ययन पूरे मन से और समय से करना चाहिए। अध्यापकों द्वारा घर के लिए दिए गए गृहकार्य को नियमित रूप से करना चाहिए। समय पर अपने सभी कार्य करने चाहिए।
विद्यार्थी को चाहिए कि प्रतिदिन प्रात:काल उठकर व्यायाम करे, अध्यापन करे, स्नान आदि करे, विद्यालय के लिए शीघ्र ही तैयार हो जाए, समय पर विद्यालय जाए, घर आकर समय पर भोजन करे, समय पर अध्यापन कार्य और खेलने भी जाए। रात्रि के भोजन के पश्चात समय पर सोना भी विद्यार्थी के लिए उत्तम होता है। इस तरह की व्यवस्थित जीवन-शैली उसे तरोताज़ा रखती है और जीवन में स्वयं को सदृढ़ भी रखती है।
यदि आँखें उठा कर देखा जाए, तो अनुशासन हर रूप में विद्यमान है। प्रकृति में तो अनुशासन के बहुत से उदाहरण दृष्टिगोचर हो जाएँगे। सूर्य समय पर उगता और समय पर अस्त हो जाता है। जीव-जन्तु भी इसी अनुशासन का पालन करते हुए दिखाई देते हैं। पेड़-पौधों में भी यही अनुशासन व्याप्त रहता है। घड़ी की सुई भी अनुशासन का पालन करते हुए चलती है। ये सब हमें अनुशासन की ही शिक्षा देते हैं।
बदलते समय के साथ-साथ आज अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है। इस अनुशासनहीनता के कारण विद्यार्थियों का जीवन अस्त-व्यस्त सा हो रहा है। उनमें तनाव बढ़ने लगा है। वे न तो समय पर भोजन करते हैं और न ही पढ़ते हैं। अपना सारा समय खेलने-कूदने या व्यर्थ के कामों में व्यतीत कर देते हैं। परीक्षा आने पर उन्हें ध्यान आता है कि उन्होंने अध्ययन तो किया ही नहीं है। इस कारण उनमें तनाव बढ़ने लगता है और परीक्षा में असफलता हाथ लगती है।
यदि विद्यार्थियों में अनुशासन नहीं होगा, तो समाज की दशा बिगड़ेगी और यदि समाज की दशा बिगड़ेगी, तो देश कैसे इससे अछुता रहेगा। हमें चाहिए कि विद्यालयों में अनुशासन बनाए रखने पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। विद्यार्थियों का मन चंचल और शरारती होता है। अनुशासन उनके चंचल मन को स्थिर करता है और शरारतों पर अकुंश लगता है। यह स्थिरता उन्हें जीवन के संघर्ष में दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ने में सहायक होती है। अनुशासन विद्यार्थी के अंदर व्याप्त गुणों का विकास करता है। अनुशासन विद्यार्थी रूपी पत्थर को तराशकर बेशकीमती हीरे में बदल देता है। अज्ञात ने सही कहा है-
''अनुशासन परिष्कार की अग्नि है, जिससे प्रतिभा योग्यता बन जाती है।''

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